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प्राचीन पंजाब में पंचरात्र वैष्णव आगमों के प्रभाव का प्रमाण है भगवान् नृसिंह का यह श्रीविग्रह। यह श्रीविग्रह सिलसिला कोहे-नमक नामक पर्वत शृंखलाओं के एक प्राचीन मन्दिर से प्राप्त हुआ है, जो अब आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में विद्यमान है। प्राचीन काल में विद्यमान वैष्णव आगमों का यह गहरा प्रभाव अब पंजाब में पूरी तरह से विनष्ट हो गया है, केवल उसके कुछ भग्नावशेष श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के इन शबदों में देखे जा सकते हैं - १. धरणीधर ईस नरसिंघ नाराईण। दाड़ा अग्रे पृथिमि धराईण (पृ० १०८२); २. भगत हेति मारिओ हरनाखसु नरसिंघ रूप होइ देह धरियो (पृ० ११०५); ३. ओइ परम पुरुष देवाधिदेव। भगति हेति नरसिंघ भेव (पृ० ११९४) इत्यादि। या किसी समय पंजाब प्रान्त का हिस्सा रह चुके कुल्लू रियासत के प्राचीन मन्दिरों में देखा जा सकता है।
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