बैटरी का आविष्कार – महर्षि अगस्त्य
समान्यतः हम मानते हैं की विद्युत बैटरी का आविष्कार बेंजामिन फ़्रेंकलिन ने किया था, किन्तु आपको यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा की बैटरी के बारे में सर्वप्रथम हमारे पूर्वजो ने विश्व को बतलाया ।बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी | बैटरी बनाने की जो विधि है जो आधुनिक विज्ञानं ने भी स्वीकार कर रखी है वो महर्षि अगस्त द्वारा दी गयी विधि है | महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थीऔर उसका विस्तार से वर्णन है अगस्त संहिता मे | पूरा बैटरी बनाने की विधि या तकनीक उन्होंने दिया है और कई लोगोने बनाके भी देखा है, और ये तकनीक हजारो वर्ष पहले की है |महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। ये वशिष्ठ मुनि (राजा दशरथ के राजकुल गुरु) के बड़े भाई थे। वेदों से लेकर पुराणों में इनकी महानता की अनेक बार चर्चा की गई है, इन्होने अगस्त्य संहिता नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमे इन्होँने हर प्रकार का ज्ञान समाहित किया, इन्हें त्रेता युग में भगवान श्री राम से मिलने का सोभाग्य प्राप्त हुआ उस समय श्री राम वनवास काल में थे, इसका विस्तृत वर्णन श्री वाल्मीकि कृत रामायण में मिलता है, इनका आश्रम आज भी महाराष्ट्र के नासिक की एक पहाड़ी पर स्थित है।
अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैःसंस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।छादयेच्छिखिग् रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।संयोगाज् जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥अर्था त् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (mercury-amalgamated zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यह प्रयोग करके भी देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई। स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के द्वारा उसके चौथे वार्षिक सभा में ७ अगस्त, १९९० को इस प्रयोग का प्रदर्शन भी विद्वानों तथा सर्वसाधारण के समक्ष किया गया।अगस्त्य संहिता में आगे लिखा हैःअनेन जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृ त:॥अर्थात सौ कुम्भों (अर्थात् उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े ग! सौ सेलों) की शक्ति का पानी में प्रयोग करने पर पानी अपना रूप बदल कर प्राण वायु (ऑक्सीजन) और उदान वायु (हाइड्रोजन) में परिवर्तित हो जाएगा।फिर लिखा गया हैःवायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके उदान स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्।अर्थात ् उदान वायु (हाइड्रोजन) को बन्धक वस्त्र (air tight cloth) द्वारा निबद्ध किया जाए तो वह विमान विद्या (aerodynamics) के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने में अपना जीवन लगाया, उन्होंने अगस्त्य संहिता एवं अन्य ग्रंथों के आधार पर विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस आधार उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे-
(१) तड़ित्-रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।(२) सौदामिनी-रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।(३) विद्युत-बादलों के द्वारा उत्पन्न।(४) शतकुंभी-सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न।(५) हृदनि- हृद या स्टोर की हुई बिजली।(६) अशनि-चुम्बकीय दण्ड से उत्पन।
अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।
कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। -शुक्र नीतियवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥आच्छादयति तत्ताम्रंस्वर्णेन रजतेन वा।सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रंशातकुंभमिति स्मृतम्॥ ५ (अगस्त्य संहिता)
अर्थात्-कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।
स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।
समान्यतः हम मानते हैं की विद्युत बैटरी का आविष्कार बेंजामिन फ़्रेंकलिन ने किया था, किन्तु आपको यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा की बैटरी के बारे में सर्वप्रथम हमारे पूर्वजो ने विश्व को बतलाया ।बैटरी सबसे पहले भारत मे बनी | बैटरी बनाने की जो विधि है जो आधुनिक विज्ञानं ने भी स्वीकार कर रखी है वो महर्षि अगस्त द्वारा दी गयी विधि है | महर्षि अगस्त ने सबसे पहले बैटरी बनाई थीऔर उसका विस्तार से वर्णन है अगस्त संहिता मे | पूरा बैटरी बनाने की विधि या तकनीक उन्होंने दिया है और कई लोगोने बनाके भी देखा है, और ये तकनीक हजारो वर्ष पहले की है |महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। ये वशिष्ठ मुनि (राजा दशरथ के राजकुल गुरु) के बड़े भाई थे। वेदों से लेकर पुराणों में इनकी महानता की अनेक बार चर्चा की गई है, इन्होने अगस्त्य संहिता नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमे इन्होँने हर प्रकार का ज्ञान समाहित किया, इन्हें त्रेता युग में भगवान श्री राम से मिलने का सोभाग्य प्राप्त हुआ उस समय श्री राम वनवास काल में थे, इसका विस्तृत वर्णन श्री वाल्मीकि कृत रामायण में मिलता है, इनका आश्रम आज भी महाराष्ट्र के नासिक की एक पहाड़ी पर स्थित है।
अगस्त्य संहिता में एक सूत्र हैःसंस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।छादयेच्छिखिग्
राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने में अपना जीवन लगाया, उन्होंने अगस्त्य संहिता एवं अन्य ग्रंथों के आधार पर विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस आधार उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे-
(१) तड़ित्-रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।(२) सौदामिनी-रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।(३) विद्युत-बादलों के द्वारा उत्पन्न।(४) शतकुंभी-सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न।(५) हृदनि- हृद या स्टोर की हुई बिजली।(६) अशनि-चुम्बकीय दण्ड से उत्पन।
अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।
कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते। -शुक्र नीतियवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥आच्छादयति तत्ताम्रंस्वर्णेन रजतेन वा।सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रंशातकुंभमिति स्मृतम्॥ ५ (अगस्त्य संहिता)
अर्थात्-कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।
स्पष्ट है कि यह आज के विद्युत बैटरी का सूत्र (Formula for Electric battery) ही है। साथ ही यह प्राचीन भारत में विमान विद्या होने की भी पुष्टि करता है।इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रयोगों के वर्णन हैं, आवश्यकता है तो उन पर शोध करने की। किन्तु विडम्बना यह है कि हमारी शिक्षा ने हमारे प्राचीन ग्रन्थों पर हमारे विश्वास को ही समाप्त कर दिया है।
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