Showing posts with label jagannath puri. Show all posts
Showing posts with label jagannath puri. Show all posts

Thursday, February 25, 2016

पुरी के श्रीजगन्नाथ‬ मंदिर के 10 ऐसे तथ्य जो विज्ञान से भी परे हैं


पुरी के श्रीजगन्नाथ‬ मंदिर के 10 ऐसे तथ्य जो विज्ञान से भी परे हैं


पुरी के श्रीजगन्नाथ‬ मंदिर का हिन्दुओ में बहुत ही महत्त्व है l यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है l जगन्नाथ शब्द का तात्पर्य जगत के स्वामी से होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।यह मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है।
 
आज हम आपको इस भव्य और चमत्कारिक मंदिर के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बतायेंगे जो आधुनिक विज्ञान की भी समझ से परे है और बताते है कि हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजिनियर और आर्किटेक्ट रहे है

1- लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है

श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह यकीनन ही आश्चर्यजनक बात है।
यह भी हैरान करने वाली ही बात है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।

2- गुंबद की छाया नहीं बनती  

यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
3- पूरे शहर में कही से भी सुदर्शन चक्र देख सकते है… 

पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।



4- हवाएं प्रक्रति से विपरीत ही चलती है 

सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।

...Copyright (C) awarepress . Read more at http://www.awarepress.com/10-facts-of-jagannathpuri-temple/4/ .

सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहां हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।


मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता।
मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।
6- भोजन को लेकर भी चमत्कार ही है 







500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है।
मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!

7- सागर की ध्वनि और शव के जलने की गंध से भी जुड़ा रहस्य



मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।

इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।

8- प्रत्येक 12 वर्ष में होता है प्रतिमा का नव कलेवर मूर्तियां नई बनती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है 


यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं।
यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।

9- विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा 


आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलो‍मीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।
अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।

हनुमानजी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा 



माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथजी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने  वीर हनुमानजी को यहां समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान जी भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे।
वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहां स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेडी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जगड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं।





1- महान जाट सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था।

2- पांच पांडव भी अज्ञातवास के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए थे। श्री मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है। भगवान जगन्नाथ जब चंदन यात्रा करते हैं तो पांच पांडव उनके साथ नरेन्द्र सरोवर जाते हैं।

3- कहते हैं कि ईसा मसीह सिल्क रूट से होते हुए जब कश्मीर आए थे तब पुन: बेथलेहम जाते वक्त उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए थे।

4- 9वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।

5- इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं। पूर्व में मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाते रहे हैं।


पुरी के श्रीजगन्नाथ‬ मंदिर का हिन्दुओ में बहुत ही महत्त्व है l यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है l जगन्नाथ शब्द का तात्पर्य जगत के स्वामी से होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।यह मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। आज हम आपको इस भव्य और चमत्कारिक मंदिर के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बतायेंगे जो आधुनिक विज्ञान की भी समझ से परे है और बताते है कि हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजिनियर और आर्किटेक्ट रहे है

...Copyright (C) awarepress . Read more at http://www.awarepress.com/10-facts-of-jagannathpuri-temple/ .
 

Friday, January 15, 2016

Jagannath Temple

Puri is one of the four holy dhamas of India (The others are Dvaraka, Badarinath and Rameshvaram). It is located 60km from Bhubaneshwar, on the coast of the Bay Of Bengal.
Puri is called Sri Purushottama Dhama, the abode of the Lord Vishnu on earth. Other names are Sri Kshetra, Nilachala-dhama, Jagannatha-dhama, Yamanika-tirtha, Martya Vaikuntha, Nilagiri, Shankha-kshetra, Dasha-avatara-kshetra and Narasimha-kshetra. Puri is about 2 km wide and 4 km long.
 The name Jagannath literally means the Lord of the Universe. King Indradyumna first established the temple of Lord Jagannath here on the Nilachala hill with the Deity being installed by Lord Brahma himself.
The present temple was begun by King Chora Ganga deva and finised by his descendant Ananga Bhima Deva during 12th century. The temple complex comprises an area of 10.7 acres and is enclosed by 2 rectangular walls. The outer enclosure is called Meghanada Prachira. The walls are 20ft high. The inner wall is called Kurma bheda. The walls were built during 15th or 16th century.
This temple has the largest kitchen in the world, and feeds thousands of devotees daily. The kitchen can prepare food for 1,00,000 people on a festival day and 25,000 is not unusual on a normal day.
There are 36 traditional communities who render a specific hereditary service to the Deities. The temple has as many as 6000 priests. There is a wheel on the top of the Jagannath temple made of an alloy of 8 metals. It is called Nila-Chakra (blue wheel). Everyday a different flag is tied to a mast attached to the Nila-Chakra. Every Ekadashi a lamp is lit on the top of the temple near the wheel.
Thirty different smaller temples surround the main temple. The Lord Narasimha temple adjacent to western side of the Mukti-Mandapa, was constructed before the present temple. In front of the main gate is an 11 m pillar known as Aruna Sthambha. This pillar was once in front of the Sun Temple in Konark. It was bought to puri during 18th Century. The figure on the pillar is Aruna, the Sun god's charioteer. 
In the passage room of this gate is a Deity of Lord Jagannath known as Patita Pavana (Savior of the Fallen). This deity is visible from the road, so non-Hindus may take His Darshan.
There are 4 gates:
  • The Eastern Simhadwara (Lion Gate).
  • The Southern Ashwadwara (House Gate).
  • The Western Vyaghradwara (The Tiger Gate).
  • The Northern Hastidwara (Elephant Gate).
There is a carving of each form by the entrance of each gate. The Lion gate, which is the main gate, is located on the Grand side of the road.
The main Deities in the temple are Lord Jagannath, His brother Lord Baladeva, and his sister Subhadra. Some of the other temples within the walls of the temple house Deities of Sri Chaitanya Mahaprabhu, Lord Rama Chandra, Sakshi Gopal, Hanuman, Lord Narasimha, Lord Varaha and others.