तनोट माता का मंदिर जैसलमेर में भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास है। सैनिकों का विश्वास है कि मां उन्हें हर विपदा से सुरक्षित रखती है।
मां तनोट को बाॅर्डर वाली माता भी कहते हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना इस मंदिर को ध्वस्त करना चाहती थी लेकिन उसके मंसूबे नाकाम हो गए।
बीएसएफ का विश्वास है कि मां तनोट ने अनेक बार उनकी सहायता की है और आज भी वे उनकी मदद करती हैं। बीएसएफ के अलावा स्थानीय लोग भी मां के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं।
1965 व 1971 में पाकिस्तान पर जीत के बाद हमारे सैनिकों की आस्था माता तनोट के प्रति और मजबूत हो गई। यह अनोखा मंदिर है जहां आस्था के साथ देशभक्ति भी जुड़ी हुई है। मंदिर के बाहर का नजारा। यहां 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान की सेना ने अनेक बम बरसाए थे लेकिन माता के प्रताप से वे मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचा सके। कई बम तो फटे ही नहीं।
पाकिस्तान पर भारत की विजय और माता तनोट के चमत्कारों के सबूत हैं ये बम। ये पाकिस्तानी सेना की ओर से छोड़े गए थे, जो निष्फल साबित हुए। इन्हें मंदिर में रखा गया है।
रेगिस्तान में हमारी विजय के चिह्न और माता के मंदिर की दूरी बताता संकेत सूचक पत्थर।
युद्ध में भारत के सैनिकों की जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तान के छक्के छूट गए थे और उनकी सेना को भारी नुकसान हुआ था। भारत के वीर सैनिकों को मिला तनोट मां का आशीर्वाद पाकिस्तान के लिए वज्रपात साबित हुआशान से लहराता तिरंगा... श्रद्धा और देश के स्वाभिमान का प्रतीक।
लोंगेवाला पोस्ट - यह नाम 1965 की जंग में सुर्खियों का हिस्सा बना था। यहां भारत-पाक सेनाओं के बीच जबर्दस्त जंग छिड़ी। हमारे वीर सैनिकों के प्रहार और माता तनोट के चमत्कारों से पाकिस्तानी यहां से भाग छुटे। कई पाकिस्तानी सैनिक यहां मारे गए थे।
पाकिस्तान पर विजय का एक और निशान। भारत से मिले मुंहतोड़ जवाब के बाद पाक सेना के हौसले पस्त हो और वह अपना टैंक यहीं छोड़ गई। आज लोग यहां आकर उस दौर की यादों को ताजा करते हैं और हमारे सैनिकों की वीरता के साथ ही मां तनोट को नमन करना नहीं भूलते।