A view of the stage of the Coromandel Shiv Mandir, SDMS Branch 370, Trinidad & Tabago [WEST INDIES]
This page is meant to spread awareness about Indian Ancient architecture, temples.
Wednesday, November 4, 2015
Neelkanth Mahadev Temple, Rishikesh, Uttarakhand
Neelkanth Mahadev Temple, Rishikesh, Uttarakhand State
Dedicated to Nilkanth (Lord Shiva). The temple is situated at a height of 1330 meters.
The temple is one of the most revered holy shrines dedicated to Lord Shiva and is a prominent Hindu pilgrimage site. It is surrounded by dense forests and is adjacent to the mountain ranges of Nar-Narayan. It is enveloped between the valleys of Manikoot, Brahmakoot and Vishnukoot and is located at the confluence of the rivers Pankaja and Madhumati.
LEGEND:
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According to scriptures, the place where the Neelkanth Mahadev Temple currently stands is the sacred location where Lord Shiva consumed the poison Halahala that originated from the sea when Devas (Gods) and Asuras (Demons) churned the ocean in order to obtain Amrita. This poison that emanated during the Samudramanthan (churning of ocean) made his throat blue in color. Thus, Lord Shiva is also known as Neelkanth, literally meaning The Blue Throated One.
The Temple:
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The shikhara of the temple is adorned with sculptures of various Devas and Asuras depicting the Samudramanthan. Neelkanth Mahadev in the form of Shivalinga is the presiding deity of the temple. The temple complex also has a natural spring where devotees usually take a holy bath before entering the premises of surrounded by dense forests.
Dedicated to Nilkanth (Lord Shiva). The temple is situated at a height of 1330 meters.
The temple is one of the most revered holy shrines dedicated to Lord Shiva and is a prominent Hindu pilgrimage site. It is surrounded by dense forests and is adjacent to the mountain ranges of Nar-Narayan. It is enveloped between the valleys of Manikoot, Brahmakoot and Vishnukoot and is located at the confluence of the rivers Pankaja and Madhumati.
LEGEND:
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According to scriptures, the place where the Neelkanth Mahadev Temple currently stands is the sacred location where Lord Shiva consumed the poison Halahala that originated from the sea when Devas (Gods) and Asuras (Demons) churned the ocean in order to obtain Amrita. This poison that emanated during the Samudramanthan (churning of ocean) made his throat blue in color. Thus, Lord Shiva is also known as Neelkanth, literally meaning The Blue Throated One.
The Temple:
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The shikhara of the temple is adorned with sculptures of various Devas and Asuras depicting the Samudramanthan. Neelkanth Mahadev in the form of Shivalinga is the presiding deity of the temple. The temple complex also has a natural spring where devotees usually take a holy bath before entering the premises of surrounded by dense forests.
Madan Mohan Temple in VRINDAVAN
Madan Mohan Temple in VRINDAVAN
Madan Mohan Temple, located near the Kali Ghat was built by Kapur Ram Das of Multan. One of the oldest temples in Vrindavan, it is closely associated with the saint Chaitanya Mahaprabhu . The original idol of Lord Madan Gopal was shifted from the shrine to Karauli in Rajasthan for safe keeping during Aurangzeb's rule. Today, a replica of the original (deity) is worshiped at the temple.
Sunday, November 1, 2015
Floating Temple of Konark
Floating Statue of Konark Temple : Proof of Levitation in Ancient World In India
A temple constructed in the pyramidal style of Maya asura once had a huge capstone made from loadstone whilst another was said to be located underground which allowed the temples deity to float in the air.
Although damaged and missing its capstone the Sun temple at Konark temple still stands today.
Iron bands are incorporated with the courses of stone blocks which compose the temple wall as if to shape the magnetic lines of force created by the temples capstone.
The Uniqueness of the Sun Temple at Konark lies in the fact that it was built using the concept of magnets.
The peak of the temple was said to be a giant 52 ton magnet. The statue of the Sun inside the temple was said to be floating free in air based on the unique arrangements of the main magnet and the reinforced magnets around the temple walls.
Between every two stone pieces in the temple there lies an iron plate. The temple was constructed from oxidized and weathered ferruginous sandstone by King Narasimhadeva-I of the Eastern Ganga Dynasty.
Although damaged and missing its capstone the Sun temple at Konark temple still stands today.
Iron bands are incorporated with the courses of stone blocks which compose the temple wall as if to shape the magnetic lines of force created by the temples capstone.
The Uniqueness of the Sun Temple at Konark lies in the fact that it was built using the concept of magnets.
The peak of the temple was said to be a giant 52 ton magnet. The statue of the Sun inside the temple was said to be floating free in air based on the unique arrangements of the main magnet and the reinforced magnets around the temple walls.
Between every two stone pieces in the temple there lies an iron plate. The temple was constructed from oxidized and weathered ferruginous sandstone by King Narasimhadeva-I of the Eastern Ganga Dynasty.
Friday, October 30, 2015
चित्तौडगढ का किला
(उदयपुर का चित्तौडगढ का किला।)
उदयपुर. पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करने वाला राजस्थान खुद में कई रोचक तथ्य छुपाए हुए है। यहां पर बने किलों का इतिहास हजारों साल पुराना है। उन्हीं किलों में से एक है चित्तौडगढ का किला। यह किला विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल है। इस किले के बारे में माना जाता है कि महाभारत के पात्र भीम ने यहां करीब 5000 वर्ष पूर्व एक किले का निर्माण करवाया था। वहीं इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा चित्रांगद द्वारा सातवीं शताब्दी में करवाया गया था।
चित्तौडगढ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह धरती से 180 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ की शिखा पर बना हुआ है। माना जाता है कि पांडव के दूसरे भाई भीम जब संपत्ति की खोज में निकले तो रास्ते में उनकी एक योगी से मुलाकात हुई। उस योगी से भीम ने पारस पत्थर मांगा। इसके बदले में योगी ने एक ऐसे किले की मांग की जिसका निर्माण रातों-रात हुआ हो।
भीम ने अपने बल और भाइयों की सहायता से किले का काम लगभग समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ थोड़ा-सा कार्य शेष था। इतना देख योगी के मन में कपट उत्पन्न हो गया। उसने जल्दी सवेरा करने के लिए यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा। जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी। जहां भीम ने लात मारी वहां एक बड़ा सा जलाशय बन गया। आज इसे ‘भीमलात’ के नाम से जाना जाता है।
700 एकड़ में फैला है यह किला
चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह किला 3 मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है। किले के पहाड़ी का घेरा करीब 8 मील का है। इसके चारो तरफ खड़े चट्टान और पहाड़ थे। साथ ही साथ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए लगातार सात दरवाजे कुछ अन्तराल पर बनाए गये थे। इन सब कारणों से किले में प्रवेश कर पाना शत्रुओं के लिए बेहद मुश्किल था।
(चित्तौड़गढ़ किले के अंदर कलिका माता का मंदिर।)
महावीर स्वामी का मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है
जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया थ। हाल ही में जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने किया है। इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। आगे महादेव का मंदिर आता है। मंदिर में शिवलिंग है तथा उसके पीछे दीवार पर महादेव की विशाल त्रिमूर्ति है, जो देखने में समीधेश्वर मंदिर की प्रतिमा से मिलती है। कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को पाण्डव भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे।
विजय स्तम्भ
यह स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप अनुठा है। इसके प्रत्येक मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। इसमें भगवानों के विभिन्न रुपों और रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां खुदी हैं। कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है। बिजली गिरने से एक बार इसके ऊपर की छत्री टूट गई थी, जिसकी महाराणा स्वरुप सिंह ने मरम्मत करायी।
(फोटो- चित्तौड़गढ़ किले के किले के अंदर बना पानी का कुंड।)
मिट्टी से बनी चट्टान
किले के अंत में दीवार के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊंचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी।
(फोटो- चित्तौड़गढ़ के द्वार पाडन पोल की तस्वीर।)
पाडन पोल
इस किले में नदी के जल प्रवाह के लिए दस मेहरावें बनी हैं, जिसमें नौ के ऊपर के सिरे नुकीले हैं। यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।
(फोटो- गणेश पोल।)
हनुमान पोल
दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है। हनुमान जी की प्रतिमा चमत्कारिक एवं दर्शनीय हैं।
गणेश पोल
हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है। इसके पास ही गणपति जी का मंदिर है।
जोड़ला पोल
यह दुर्ग का पांचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।
(फोटो- राम पोल।)
लक्ष्मण पोल
दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।
राम पोल
लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के बाद चढ़ाई समाप्त हो जाती है।
(फोटो- चित्तौड़गढ़ किले के किले के अंदर बना पानी का कुंड।)
फोटो- पदमिनी महल।
फोटो- पदमिनी महल के अंदर का नजारा।
फोटो- फतह प्रकाश पैलेस।
फोटो- गोमुख कुण्ड।
फोटो- किले का कुम्भा श्याम मंदिर।
(फोटो- पदमिनी पैलेस।)
फोटो- राणा कुम्भा महल।
भोपाल के इर्दगिर्द आदि मानव के पद चिन्ह
भोपाल के इर्दगिर्द आदि मानव के पद चिन्ह
प्रागैतिहासिक कालीन मानव सभ्यता के पद चिन्ह वैसे तो समूचे भारत में यत्र तंत्र मिलती हैं परन्तु मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ एक ऐसा भूभाग है जहाँ इनकी प्रचुरता है. भोपाल के पास भीमबेटका के शैलाश्रय एवं उनमें प्राप्त होने वाले शैलचित्र तो अब जग प्रसिद्द हो चले हैं. UNESCO द्वारा इन्हें विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी गयी है. वैसे इस प्रकार के शैलचित्र तो रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में (कबरा पहाड़), होशंगाबाद के निकट आदमगढ़, छतरपुर जिले के बिजावर से कुछ दूर पहाडियों पर, रायसेन जिले में बरेली तहसील के पाटनी गाँव में मृगेंद्रनाथ की गुफा के शैलचित्र, भोपाल के पास ही रायसेन जाने वाले मार्ग से लगी पहाडियों पर (चिडिया टोल) और अभी अभी होशंगाबाद के पास बुधनी से खबर आई थी कि वहां के एक पत्थर खदान में भी शैल चित्र पाए गए हैं. हो हल्ला मचा और प्रशासन को खदान की लीस निरस्त करनी पड़ी. भीमबेटका से ५ किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह है “पेंगावन”जहाँ ३५ शैलाश्रय पाए गए है और यहाँ के शैल चित्र दुर्लभ माने गए हैं. इन सभी शैलचित्रों की प्राचीनता १०,००० से ३५,००० वर्ष की आंकी गयी है.
मध्य प्रदेश का इको टूरिस्म डेवेलोपमेंट बोर्ड पिछले कुछ वर्षों से जंगलों में छिपी ऐसी पुरा संपदाओं को चिन्हित करने और इन जगहों को पर्यटन के लिए आकर्षक बनाने के कार्य में लगा हुआ है और अब तक जो कार्य हुए हैं वे सराहनीय रहे हैं. अभी कुछ वर्षों पूर्व ही अखबार में खबर आई थी कि भोपाल से कोलार बाँध की ओर जाने वाले रास्ते के दाहिनी ओर पहाडियों पर भी शैल चित्र पाए गए हैं. उधर दूसरी ओर वन विभाग के द्वारा पर्यावरण पर्यटन को विकसित करने के लिए केरवा बाँध के पास बहुत सुन्दर मचान और झोपडियां आदि बनवाए गए हैं. पर्वतारोहण एवं पद यात्रा (ट्रेकिंग) आदि के कार्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं. केरवा बाँध की तरफ समर्धा पर्वत श्रेणी में गणेश पहाडी पर कुछ शैलाश्रय भी मिले और वहां तक जाने के लिए जंगल के बीच से रास्ता भी बना दिया है. कोलर रोड से दिखने वाली पहाडी भी यही है. हमें यह जानकारी हमारे मित्र श्री आशीष जोशी, जो हमारे घर के सामने ही रहते हैं, ने बड़े उत्साह पूर्वक दी और कुछ चित्र भी उपलब्ध कराये.
उन्होंने एक और विचित्रता की और हमारा ध्यान आकृष्ट किया और वह था उन्हीं शैलाश्रयों से और कुछ दूरी पर माडिया कोट में पत्थरों से बना एक बड़ा सा वृत्त जिसकी गोलाई लगभाग ७० मीटर रही होगी. इसे श्री आशीष जोशी के साथ गए लोगों ने आदि मानवों द्वारा निर्मित कोई पवित्र स्थल रहे होने का अनुमान लगाया है. उन्होंने उसे टुम्युलस (Tumulus) की तरह उनके मृतकों के दफ़नाने की जगह भी सोच ली. हमने भी पाषाण युगीन कब्रगाह देश के अन्य भागों में देखे हैं और अमूमन सभी जगह हमने बड़े बड़े पाषाण खंडों को जमीन पर गडा हुआ पाया है. इसलिए माडिया कोट में पत्थरों से वृत्ताकार संरचना हमारे लिए कौतूहल का विषय है. चार पांच लोगों के सिवा अभी तो यह किसी की नज़र में नहीं आया है और यदि नज़र पड़ी भी हो तो इसे अनदेखा ही किया गया है. यह निश्चित रूप से मानव द्वारा ही निर्मित है और न कि प्राकृतिक रूप से बना हुआ.
विकिमापिया तथा गूगल अर्थ अब हमारे जैसे आम आदमी के लिए भी बहुत उपयोगी हो गया है. हमने पूरे भूभाग का अवलोकन किया तो एक बात सामने आई. होशंगाबाद से लेकर साँची और आगे तक एक पर्वत श्रृंखला है जिनपर चित्रांकित शैलाश्रय मिल रहे हैं. साथ ही इसी पर्वत श्रृंखला पर बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी हुआ है. साँची तो सर्वविदित है परन्तु उसके अतिरिक्त, सतधारा, सोनारी और हलाली बाँध के इर्दगिर्द भी बहुत से स्तूप विद्यमान हैं जिनकी जानकारी कम लोगों को है. संभव है कि माडिया कोट में स्तूप बनाने की योजना रही हो और रेखांकित कर छोडना पड़ा हो अथवा पूरा बन जाने के बाद उजड़ गया हो या उजाड़ दिया गया हो. हमें तो उपग्रह के चित्र में एक और गोलाकार संरचना दिख रही है जो कुछ छोटी है. यह संदर्भित मुख्य वृत्त के दाहिनी ओर कुछ नीचे है. लगता है कि इस स्थल को भी तलाश है किसी वाकणकर जी का जो इन्हें कुछ अर्थ दे सकें.
light from well in Portgal
रहस्यमयी विशिंग वेल – जिसके अंदर से निकलती है रोशनी
http://www.ajabgjab.com/
Image Credit Chegulo Via Flickr |
दुनिया के लगभग हरेक हिस्से में ऐसी कई जगह मौजूद है जो की पहली नज़र में देखने से हमको रहस्यमयी नज़र आती है। विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद हम लोग वहां पर होने वाली घटनाओं का कोई निश्चित कारण नहीं जान पाए है। ऐसी ही एक जगह पुर्तगाल के सिन्तारा के समीप स्थित हैं, यहाँ पर एक रहस्यमयी कुआं है जिसकी खासियत यह है की इस कुएं की जमीन के अंदर से रोशनी निकलती है और बाहर की ओर आती है। हैरानी की बात यह है कि इस कुएं के अंदर प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में रोशनी कहां से आती है यह रहस्य है।
Image Credit Chegulo Via Flickr |
यह है विशिंग वेल –
इस कुएं को विशिंग वेल भी माना जाता है। लोग इसमें सिक्का डालकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से इच्छा पूरी होती है। हालांकि, जो भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं, उनके बीच हमेशा यह सवाल उठता है कि कुएं के अंदर से आने वाली रोशनी कहां से आती है। लेकिन आज तक यह रहस्य अनसुलझा है। इस कुएं की गहराई चार मंजिला इमारत के बराबर है, जो जमीन के अंदर जाते हुए संकरी होती जाती है। लेडीरिनथिक ग्रोटा नाम का यह कुआं दिखने में उल्टे टॉवर की तरह है। इस कुएं के पास ही एक अन्य छोटा कुआं है। दोनों कुएं सुरंगो के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए है। यह कुआं क्यूंटा डा रिगालेरिया के पास स्तिथ है। क्यूंटा डा रिगालेरिया, यूनेस्को द्वारा संरक्षित वर्ल्ड हेरिटेज साइट है।
इस कुएं को विशिंग वेल भी माना जाता है। लोग इसमें सिक्का डालकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से इच्छा पूरी होती है। हालांकि, जो भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं, उनके बीच हमेशा यह सवाल उठता है कि कुएं के अंदर से आने वाली रोशनी कहां से आती है। लेकिन आज तक यह रहस्य अनसुलझा है। इस कुएं की गहराई चार मंजिला इमारत के बराबर है, जो जमीन के अंदर जाते हुए संकरी होती जाती है। लेडीरिनथिक ग्रोटा नाम का यह कुआं दिखने में उल्टे टॉवर की तरह है। इस कुएं के पास ही एक अन्य छोटा कुआं है। दोनों कुएं सुरंगो के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए है। यह कुआं क्यूंटा डा रिगालेरिया के पास स्तिथ है। क्यूंटा डा रिगालेरिया, यूनेस्को द्वारा संरक्षित वर्ल्ड हेरिटेज साइट है।
कुएं के अंदर दिखाई दे रही रहस्यमयी रोशनी Image Credit Chegulo Via Flickr |
यहां होते थे दीक्षा संस्कार –
इस कुएं का निर्माण पानी को संगृहीत करने के उद्देशय से नहीं किया गया था। इसके बजाय इन रहस्यमयी टॉवर नुमा कुओं का प्रयोग गोपनीय दीक्षा संस्कारों के लिए किया जाता था।
इस कुएं का निर्माण पानी को संगृहीत करने के उद्देशय से नहीं किया गया था। इसके बजाय इन रहस्यमयी टॉवर नुमा कुओं का प्रयोग गोपनीय दीक्षा संस्कारों के लिए किया जाता था।
कुएं का तल Images Credit Wikipedia |
कुएं के अंदर से आकाश का दृश्य Images Credit Wikipedia |
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