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Friday, April 22, 2016

राजस्थान का खजुराहो जो है 900 सालो से वीरान ! किराडू मंदिर


किराडू राजस्थान के बाड़मेर जिले में  स्थित है। किराडू अपने मंदिरों कि शिल्प कला के लिया विख्यात है। इन मंदिरों का निर्माण 11  वि शताब्दी में हुआ था।  किराडू को राजस्थान का खजुराहों भी कहा जाता है। लेकिन किराडू को खजुराहो जैसी ख्याति नहीं मिल पाई क्योकि यह जगह पिछले 900 सालों से वीरान है और आज भी यहाँ पर दिन में कुछ चहल – पहल रहती है पर शाम होते ही यह जगह वीरान हो जाती है , सूर्यास्त के बाद यहाँ पर कोई भी नहीं रुकता है। राजस्थान के इतिहासकारों के अनुसार किराडू शहर अपने समय में सुख सुविधाओं से युक्त एक विकसित प्रदेश था।  दूसरे प्रदेशों के लोग यहाँ पर व्यपार करने आते थे। लेकिन 12  वि शताब्दी में, जब किराडू पर परमार वंश का राज था , यह शहर वीरान हो जाता है।  आखिर ऐसा क्यों होता है, इसकी कोई पुख्ता जानकारी तो इतिहास में उपलब्ध नहीं है पर इस को लेकर एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है।





किराडू पर है एक साधू का श्राप :-

कहते हैं इस शहर पर एक साधु का श्राप लगा हुआ है। करीब 900साल पहले परमार राजवंश यहां राज करता था। उन दिनों इस शहर में एक ज्ञानी साधु भी रहने आए थे। यहां पर कुछ दिन बिताने के बाद साधु देश भ्रमण पर निकले तो उन्होंने अपने साथियों को स्थानीय लोगों के सहारे छोड़ दिया।
एक दिन सारे शिष्य बीमार पड़ गए और बस एक कुम्हारिन को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति ने उनकी देखभाल नहीं की। साधु जब वापिस आए तो उन्हें यह सब देखकर बहुत क्रोध आया। साधु ने कहा कि जिस स्थान पर दया भाव ही नहीं है वहां मानवजाति को भी नहीं होना चाहिए। उन्होंने संपूर्ण नगरवासियों को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। जिस कुम्हारिन ने उनके शिष्यों की सेवा की थी, साधु ने उसे शाम होने से पहले यहां से चले जाने को कहा और यह भी सचेत किया कि पीछे मुड़कर न देखे।
लेकिन कुछ दूर चलने के बाद कुम्हारिन ने पीछे मुड़कर देखा और वह भी पत्थर की बन गई। इस श्राप के बाद अगर शहर में शाम ढलने के पश्चात कोई रहता था तो  वह पत्थर का बन जाता था।  और यही कारण है कि यह शहर सूरज ढलने के साथ ही वीरान हो जाता है।

कुछ इतिहासकारो का मत है कि किराडू मुगलों के आक्रमण के कारण वीरान हुए , लेकिन इस प्रदेश में मुगलों का आक्रमण 14 वि शताब्दी में हुआ था और किराडू 12  वि शताब्दी में ही  वीरान हो गया था इसलिए इसके वीरान  होने के पीछे कोई और ही कारण है।
किराडू के मंदिरों का निर्माण किसने कराया इसकी भी कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालाकि यहाँ पर 12 वि शताब्दी के तीन शिलालेख उपलब्ध है पर उन पर भी इनके निर्माण से सम्बंधित कोई जानकारी नहीं है। पहला शिलालेख विक्रम संवत 1209 माघ वदि 14 तदनुसार 24 जनवरी 1153 का  है जो कि गुजरात के चौलुक्य कुमार पाल के समय का है। दूसरा विक्रम संवत 1218, ईस्वी 1161 का है जिसमें परमार सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली दी गई है और तीसरा यह विक्रम संवत 1235 का है जो गुजरात के चौलुक्य राजा भीमदेव द्वितीय के सामन्त चौहान मदन ब्रह्मदेव का है। इतिहासकारों का मत है कि किराडू के मंदिरों का निर्माण 11 वि शताब्दी में हुआ था तथा इनका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और उनके वंशजो ने किया था।

किराडू में किसी समय पांच भव्य मंदिरों कि एक श्रंखला थी। पर 19 वि शताब्दी के प्रारम्भ में आये भूकम्प से इन मंदिरों को बहुत नुक्सान पहुंचा और दूसरा सदियों से वीरान रहने के कारण इनका ठीक से रख रखाव भी नहीं हो पाया। आज इन पांच मंदिरों में से केवल विष्णु मंदिर और सोमेश्वर मंदिर ही ठीक हालत में है।  सोमेश्वर मंदिर यहाँ का  सबसे बड़ा मंदिर है।  ऐसी मान्यता है कि विष्णु मंदिर से ही यहां के स्थापत्य कला की शुरुआत हुई थी और सोमेश्वर मंदिर को इस कला के उत्कर्ष का अंत माना जाता है।

किराडू के मंदिरों का शिल्प है अद्भुत : स्थापत्य कला के लिए मशहूर इन प्राचीन मंदिरों को देखकर ऐसा लगता है मानो शिल्प और सौंदर्य के किसी अचरज लोक में पहुंच गए हों। पत्थरों पर बनी कलाकृतियां अपनी अद्भुत और बेमिसाल अतीत की कहानियां कहती नजर आती हैं। खंडहरों में चारो ओर बने वास्तुशिल्प उस दौर के कारीगरों की कुशलता को पेश करती हैं।
नींव के पत्थर से लेकर छत के पत्थरों में कला का सौंदर्य पिरोया हुआ है। मंदिर के आलंबन में बने गजधर, अश्वधर और नरधर, नागपाश से समुद्र मंथन और स्वर्ण मृग का पीछा करते भगवान राम की बनी पत्थर की मूर्तियां ऐसे लगती हैं कि जैसे अभी बोल पड़ेगी। ऐसा लगता है मानो ये प्रतिमाएं शांत होकर भी आपको खुद के होने का एहसास करा रही है।
सोमेश्वर मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है।  भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की बनावट दर्शनीय है। अनेक खम्भों पर टिका यह मंदिर भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, तो इसका बाहरी आवरण खजुराहो के मंदिर का अहसास कराता है। काले व नीले पत्थर पर हाथी- घोड़े व अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की सुन्दरता में चार चांद लगाती है। मंदिर के भीतरी भाग में बना भगवान शिव का मंडप भी बेहतरीन है।
किराडू शृंखला का दूसरा मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर सोमेश्वर मंदिर से छोटा है किन्तु स्थापत्य व कलात्मक दृष्टिï से काफी समृद्ध है। इसके अतिरिक्त किराडू के अन्य 3 मंदिर हालांकि खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, लेकिन इनके दर्शन करना भी एक सुखद अनुभव है।यदि सरकार और पुरातत्व विभाग किराडू के विकास पर ध्यान दे तो यह जगह एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकती है l


Wednesday, April 8, 2015

Kiradu Someshvara Temple

A user's photo.Exquisite sculptures at Kiradu Someshvara Temple
Built in the 11th century, the Someshvara ancient temple is said to be the best example of its kind today. Cons...tructed in honour of Lord Shiva (the Destroyer in the holy trinity of Hindu gods), it has a rather stumpy multi-turreted tower and beautiful sculptures dedicated to the god. The inner sanctum has a resplendent image of the Lord. At its base, is a large reverse-curve lotus, which has a resemblance with the early Chola Temples of south India. This ancient temple also depicts scenes from the Hindu epic Ramayana. Other notable featuresare sculptures of apsaras and vyalas