Friday, October 30, 2015

चित्तौडगढ का किला

इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(उदयपुर का चित्तौडगढ का किला।)
उदयपुर. पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करने वाला राजस्थान खुद में कई रोचक तथ्य छुपाए हुए है। यहां पर बने किलों का इतिहास हजारों साल पुराना है। उन्हीं किलों में से एक है चित्तौडगढ का किला। यह किला विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल है। इस किले के बारे में माना जाता है कि महाभारत के पात्र भीम ने यहां करीब 5000 वर्ष पूर्व एक किले का निर्माण करवाया था। वहीं इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा चित्रांगद द्वारा सातवीं शताब्दी में करवाया गया था।
चित्तौडगढ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह धरती से 180 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ की शिखा पर बना हुआ है। माना जाता है कि पांडव के दूसरे भाई भीम जब संपत्ति की खोज में निकले तो रास्ते में उनकी एक योगी से मुलाकात हुई। उस योगी से भीम ने पारस पत्थर मांगा। इसके बदले में योगी ने एक ऐसे किले की मांग की जिसका निर्माण रातों-रात हुआ हो।
भीम ने अपने बल और भाइयों की सहायता से किले का काम लगभग समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ थोड़ा-सा कार्य शेष था। इतना देख योगी के मन में कपट उत्पन्न हो गया। उसने जल्दी सवेरा करने के लिए यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा। जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी। जहां भीम ने लात मारी वहां एक बड़ा सा जलाशय बन गया। आज इसे ‘भीमलात’ के नाम से जाना जाता है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
700 एकड़ में फैला है यह किला
चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह किला 3 मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है। किले के पहाड़ी का घेरा करीब 8 मील का है। इसके चारो तरफ खड़े चट्टान और पहाड़ थे। साथ ही साथ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए लगातार सात दरवाजे कुछ अन्तराल पर बनाए गये थे। इन सब कारणों से किले में प्रवेश कर पाना शत्रुओं के लिए बेहद मुश्किल था।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(चित्तौड़गढ़ किले के अंदर कलिका माता का मंदिर।)
महावीर स्वामी का मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है
जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया थ। हाल ही में जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने किया है। इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। आगे महादेव का मंदिर आता है। मंदिर में शिवलिंग है तथा उसके पीछे दीवार पर महादेव की विशाल त्रिमूर्ति है, जो देखने में समीधेश्वर मंदिर की प्रतिमा से मिलती है। कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को पाण्डव भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
विजय स्तम्भ
यह स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप अनुठा है। इसके प्रत्येक मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। इसमें भगवानों के विभिन्न रुपों और रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां खुदी हैं। कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है। बिजली गिरने से एक बार इसके ऊपर की छत्री टूट गई थी, जिसकी महाराणा स्वरुप सिंह ने मरम्मत करायी।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- चित्तौड़गढ़ किले के किले के अंदर बना पानी का कुंड।)
मिट्टी से बनी चट्टान
किले के अंत में दीवार के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊंचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- चित्तौड़गढ़ के द्वार पाडन पोल की तस्वीर।)
पाडन पोल
इस किले में नदी के जल प्रवाह के लिए दस मेहरावें बनी हैं, जिसमें नौ के ऊपर के सिरे नुकीले हैं। यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- गणेश पोल।)
हनुमान पोल
दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है। हनुमान जी की प्रतिमा चमत्कारिक एवं दर्शनीय हैं।
गणेश पोल
हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है। इसके पास ही गणपति जी का मंदिर है।
जोड़ला पोल
यह दुर्ग का पांचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- राम पोल।)
लक्ष्मण पोल
दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।
राम पोल
लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के बाद चढ़ाई समाप्त हो जाती है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- चित्तौड़गढ़ किले के किले के अंदर बना पानी का कुंड।)
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- पदमिनी महल।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- पदमिनी महल के अंदर का नजारा।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- फतह प्रकाश पैलेस।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- गोमुख कुण्ड।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- किले का कुम्भा श्याम मंदिर।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- पदमिनी पैलेस।)
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- राणा कुम्भा महल।

भोपाल के इर्दगिर्द आदि मानव के पद चिन्ह

भोपाल के इर्दगिर्द आदि मानव के पद चिन्ह

प्रागैतिहासिक कालीन मानव सभ्यता के पद चिन्ह वैसे तो समूचे भारत में यत्र तंत्र मिलती हैं परन्तु मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ एक ऐसा भूभाग है जहाँ इनकी प्रचुरता है. भोपाल के पास भीमबेटका के शैलाश्रय एवं उनमें प्राप्त होने वाले शैलचित्र तो अब जग प्रसिद्द हो चले हैं. UNESCO द्वारा इन्हें विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी गयी है. वैसे इस प्रकार के शैलचित्र तो रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में (कबरा पहाड़), होशंगाबाद के निकट आदमगढ़, छतरपुर जिले के बिजावर से कुछ दूर पहाडियों पर, रायसेन जिले में बरेली तहसील के पाटनी गाँव में मृगेंद्रनाथ की गुफा के शैलचित्र, भोपाल के पास ही रायसेन जाने वाले मार्ग से लगी पहाडियों पर (चिडिया टोल) और अभी अभी होशंगाबाद के पास बुधनी से खबर आई थी कि वहां के एक पत्थर खदान में भी शैल चित्र पाए गए हैं. हो हल्ला मचा और प्रशासन को खदान की लीस निरस्त करनी पड़ी. भीमबेटका से ५ किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह है “पेंगावन”pengavanजहाँ ३५ शैलाश्रय पाए गए है और यहाँ के शैल चित्र दुर्लभ माने गए हैं. इन सभी शैलचित्रों की प्राचीनता १०,००० से ३५,००० वर्ष की आंकी गयी है.
मध्य प्रदेश का इको टूरिस्म डेवेलोपमेंट बोर्ड पिछले कुछ वर्षों से जंगलों में छिपी ऐसी पुरा संपदाओं को चिन्हित करने और इन जगहों को पर्यटन के लिए आकर्षक बनाने के कार्य में लगा हुआ है और अब तक जो कार्य हुए हैं वे सराहनीय रहे हैं. अभी कुछ वर्षों पूर्व ही अखबार में खबर आई थी कि भोपाल से कोलार बाँध की ओर जाने वाले रास्ते के दाहिनी ओर  पहाडियों पर भी शैल चित्र पाए गए हैं. उधर दूसरी ओर वन विभाग के द्वारा पर्यावरण पर्यटन को विकसित करने के लिए केरवा बाँध के पास बहुत सुन्दर मचान और झोपडियां आदि बनवाए गए हैं. पर्वतारोहण एवं पद यात्रा (ट्रेकिंग) आदि के कार्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं. केरवा बाँध की तरफ समर्धा पर्वत श्रेणी में गणेश पहाडी पर कुछ शैलाश्रय भी मिले और वहां तक जाने के लिए जंगल के बीच से रास्ता भी बना दिया है. कोलर रोड से दिखने वाली पहाडी भी यही है. हमें यह जानकारी हमारे मित्र श्री आशीष जोशी, जो हमारे घर के सामने ही रहते हैं, ने बड़े उत्साह पूर्वक दी और कुछ चित्र भी उपलब्ध कराये.kerwa6
kerwa11
kerwa3
kerwa5
kerwa8
kerwa10
kerwa9
kerwa2
उन्होंने एक और विचित्रता की और हमारा ध्यान आकृष्ट किया और वह था उन्हीं शैलाश्रयों से और कुछ दूरी पर माडिया कोट में पत्थरों से बना एक बड़ा सा वृत्त जिसकी गोलाई लगभाग ७० मीटर रही होगी. इसे श्री आशीष जोशी के साथ  गए लोगों ने आदि मानवों द्वारा निर्मित कोई पवित्र स्थल रहे होने का अनुमान लगाया है. उन्होंने उसे टुम्युलस (Tumulus) की तरह उनके मृतकों के दफ़नाने की जगह भी सोच ली. हमने भी पाषाण युगीन कब्रगाह देश के अन्य भागों में देखे हैं और अमूमन सभी जगह हमने बड़े बड़े पाषाण खंडों को जमीन पर गडा  हुआ पाया है. इसलिए माडिया कोट में पत्थरों से वृत्ताकार संरचना हमारे लिए कौतूहल का विषय है. चार पांच लोगों के सिवा अभी तो यह किसी की नज़र में नहीं आया है और यदि नज़र पड़ी भी हो तो इसे अनदेखा ही किया गया है. यह निश्चित रूप से मानव द्वारा ही निर्मित है और न कि प्राकृतिक रूप से बना हुआ.burial round
burial
विकिमापिया तथा गूगल अर्थ अब हमारे जैसे आम आदमी के लिए भी बहुत उपयोगी हो गया है. हमने पूरे भूभाग का अवलोकन किया तो एक बात सामने आई. होशंगाबाद से लेकर साँची और आगे तक एक पर्वत श्रृंखला है जिनपर चित्रांकित शैलाश्रय मिल रहे हैं. साथ ही इसी पर्वत श्रृंखला पर बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी हुआ है. साँची तो सर्वविदित है परन्तु उसके अतिरिक्त, सतधारा, सोनारी और हलाली बाँध के इर्दगिर्द भी बहुत से स्तूप विद्यमान हैं जिनकी जानकारी कम लोगों को है. संभव है कि माडिया कोट में स्तूप बनाने की योजना रही हो और रेखांकित कर छोडना पड़ा हो अथवा पूरा बन जाने के बाद उजड़ गया हो या उजाड़ दिया गया हो. हमें तो उपग्रह के चित्र में एक और गोलाकार संरचना दिख रही है जो कुछ छोटी है. यह संदर्भित मुख्य वृत्त के दाहिनी ओर कुछ नीचे है. लगता है कि इस स्थल को भी तलाश है किसी वाकणकर जी का जो इन्हें कुछ अर्थ दे सकें.

light from well in Portgal

रहस्यमयी विशिंग वेल – जिसके अंदर से निकलती है रोशनी

 http://www.ajabgjab.com/
Mysterious Initiation wel
Image Credit Chegulo Via Flickr
दुनिया के लगभग हरेक हिस्से में ऐसी कई जगह मौजूद है जो की पहली नज़र में देखने से हमको रहस्यमयी नज़र आती है।  विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद हम लोग वहां पर होने वाली घटनाओं का कोई निश्चित कारण नहीं जान पाए है।  ऐसी ही एक जगह पुर्तगाल के सिन्तारा के समीप स्थित हैं, यहाँ पर एक रहस्यमयी कुआं है जिसकी खासियत यह है की इस कुएं की जमीन के अंदर से रोशनी निकलती है और बाहर की ओर आती है। हैरानी की बात यह है कि इस कुएं के अंदर प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में रोशनी कहां से आती है यह रहस्य है।
Mysterious Initiation wel
Image Credit Chegulo Via Flickr
यह है विशिंग वेल –
इस कुएं को विशिंग वेल भी माना जाता है। लोग इसमें सिक्का डालकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से इच्छा पूरी होती है। हालांकि, जो भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं, उनके बीच हमेशा यह सवाल उठता है कि कुएं के अंदर से आने वाली रोशनी कहां से आती है। लेकिन आज तक यह रहस्य अनसुलझा है। इस कुएं की गहराई चार मंजिला इमारत के बराबर है, जो जमीन के अंदर जाते हुए संकरी होती जाती है। लेडीरिनथिक ग्रोटा नाम का यह कुआं दिखने में उल्टे टॉवर की तरह है। इस कुएं के पास ही एक अन्य छोटा कुआं है।  दोनों कुएं सुरंगो के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए है।  यह कुआं क्यूंटा डा रिगालेरिया के पास स्तिथ है। क्यूंटा डा रिगालेरिया, यूनेस्को द्वारा संरक्षित वर्ल्ड हेरिटेज साइट है।
Mysterious Initiation wel
कुएं के अंदर दिखाई दे रही रहस्यमयी रोशनी   Image Credit Chegulo Via Flickr
यहां होते थे दीक्षा संस्कार –
इस कुएं का निर्माण पानी को संगृहीत करने के उद्देशय से नहीं किया गया था।  इसके बजाय इन रहस्यमयी टॉवर नुमा कुओं का प्रयोग गोपनीय दीक्षा संस्कारों के लिए किया जाता था।
Mysterious Initiation wel
 कुएं का तल   Images Credit Wikipedia
Mysterious Initiation wel
कुएं के अंदर से आकाश का दृश्य   Images Credit Wikipedia

नीमराना फोर्ट पैलेस राजस्थान

देश के स्वर्णिम इतिहास की गाथा :–
एक येसा स्वीमिंग पूल जो 550 साल पहले पहाड़ को काटकर बना 10 मंजिला किला, ऊपर है स्वीमिंग पूल…..!
राजस्थान के पहाड़ और उनपर बसे भव्य और रहस्यों से भरे किले प्रदेश को एक नई पहचान दिलाते हैं। इनकी रोचकता इतनी है कि देशी-विदेशी सैलानी यहां भारी संख्या में देखेजा सकते हैं। अरावली की पहाडिय़ों पर स्थित नीमराना फोर्ट पैलेस उनमें से एक है। इस किले का निर्माण लगभग 550 साल पहले सन 1464 में हुआ था। नीमराना फोर्ट पैलेस रिसोर्ट के रूप में इस्तेमाल की जा रही भारत की सबसे पुरानी ऐतिहासिक इमारतों में से एक है।
इसके निर्माण की कहानी बेहद दिलचस्प है ….10 मंजिलें इस विशाल किले को तीन एकड़ में अरावली पहाड़ी को काट कर बनाया गया है। यही कारण है कि इस महल में नीचे से ऊपर जाना किसी पहाड़ी पर चढ़ने का अहसास कराता है।
नीमराना कि भीतरी साज-सज्जा में काफी छाप अंग्रेजों के दौर की भी देखी जा सकती है। ज्यादातर कमरों की अपनी बालकनी है जो आस-पास की भव्यता का पूरा नजारा प्रदान करती है। यहां तक की इस किले के बाथरूम से भी आपको हरे-भरे नजारे मिल जायेंगे।
10 मंजिल वाले इस पैलेस में हैं 50 कमरे…..
दस मंजिलों पर कुल 50 कमरे इस रिसोर्ट में हैं। इसे 1986 में हेरिटेज रिसोर्ट के रूप में तब्दील कर दिया गया। यहां नजारा महल और दरबार महल में कॉन्फ्रेंस हाल है।
पैलेस में बदले इस किले में कई रेस्तरां बने हैं। नाश्ते के लिए राजमहल व हवामहल तो खाने के लिए आमखास, पांच महल, अमलतास, अरण्य महल, होली कुंड व महा बुर्ज बने हुए हैं। इस किले की बनावट ऐसी है कि हर कदम पर शाही ठाठ का अहसास होता है।
यहां पर बने हर कमरे का अलग नाम है, देव महल से लेकर गोपी महल तक। नीमराना की एक खास बात यह है कि यहां कमरे केवल दिन भर के इस्तेमाल के लिए भी मिल जाते हैं और अगर आप खाली सैर करना चाहते हैं तो मामूली शुल्क देकर दो घंटे के लिए महल की भव्यता का लुत्फ उठा सकते हैं।
नीमराना ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। इसे पृथ्वीराज चौहान के वंशजों ने अपनी राजधानी के रूप में चुना था। पृथ्वीराज चौहान की 1192 में मुहम्मद गौरी के साथ जंग में मौत हो गई थी। इसके बाद चौहान वंश के राजा राजदेव ने नीमराना चुना लेकिन यहां का निर्माता मियो नामक बहादुर शासक था। चौहानों से जंग में हारने के बाद मियो ने अनुरोध किया कि उस जगह को उसके जगह का नाम दे दिया जाये, तभी से इसे नीमराना कहा जाने लगा।

कंबोडिया ( कंबूज)

कंबोडिया, वह देश है जिसकी राष्ट्रभाषा कभी संस्कृत थी। इतिहास में इसका उल्लेख है। यहां पर ६वी शताब्दी से लेकर १२ वी शताब्दी तक देवभाषा संस्कृत को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त था। कंबोडिया का प्राचीन नाम कंबुज था।
वैसे तो कंबोडिया के उस समय इंडोनेशिया, मलय, जावा, सुमात्रा, कम्बुज, ब्रह्मदेश, सियाम, श्रीलंका, जापान, तिब्बत, नेपाल आदि देशों से उसके राजनीतिक और व्यापारिक संबंध थे। इन देशों से अपनी समन्वयी संस्कृति और संस्कृत के आधार पर कंबोडिया ( कंबूज) वर्षों से भारत के संपर्क में था। जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।

कंबुज देश के संस्कृत शिलालेख

शोधकर्ता भक्तिन कौन्तेया अपनी ऐतिहासिक रूपरेखा में लिखते हैं कि, ‘प्राचीन काल में कम्बोडिया को कंबुज देश कहा जाता था। ९ वी से १३ वी शती तक अङ्कोर साम्राज्य पनपता रहा। राजधानी यशोधरपुर सम्राट यशोवर्मन ने बसाई थी।’
अङ्कोर राज्य उस समय वर्तमान के कंबोडिया, थायलेण्ड, वियतनाम और लाओस सभी को आवृत्त करता हुआ विशाल राज्य था। संस्कृत से जुडी भव्य संस्कृति के प्रमाण इन अग्निकोणीय एशिया के देशों में आज भी विद्यमान हैं।
कंबुज देशों में संस्कृत का महत्त्व
कंबुज शिलालेख जो खोजे गए हैं वे कंबुज, लाओस, थायलैंड, वियेतनाम इत्यादि विस्तृत प्रदेशों में पाए गए हैं। कुछ ही शिला लेख पुरानी मेर में मिलते हैं। जबकि बहुसंख्य लेख संस्कृत भाषा में ही मिलते हैं।
संस्कृत उस समय की दक्षिण पूर्वअग्निकोणीय देशों की सांस्कृतिक भाषा थी। कंबुज, मेर ने अपनी भाषा लिखने के लिए भारतीय लिपि अपनायी थी। आधुनिक मेर भारत से ही स्वीकार की हुई लिपि में लिखी जाती है।
वास्तव में ग्रंथ ब्राह्मीश ही आधुनिक मेर की मातृ.लिपि है। कंबुज देश ने देवनागरी और पल्लव ग्रंथ लिपि के आधार पर अपनी लिपि बनाई है। आज कंबुज भाषा में ७० प्रतिशत शब्द सीधे संस्कृत से लिए गए हैं, यह कहते है जिसे कौंतेय कहते हैं।
वास्तव में संस्कृत यहां की न्यायालयीन भाषा थी, एक सहस्रों वर्षों से भी अधिक समय तक के लिए उसका चलन था।सारे शासकीय आदेश संस्कृत में होते थे।
भूमि के या खेती के क्रय- विक्रय पत्र संस्कृत में ही होते थे। मंदिरों का प्रबंधन भी संस्कृत में ही सुरक्षित रखा जाता था। १२५० ई. में शिलालेख उसमें से बहुसंख्य संस्कृत में लिखे पाए जाते हैं।

Aundha Nagnath Nageshwar Temple in Hingoli, Aundha Nagnath, Maharashtra

Aundha Nagnath Nageshwar Temple in Hingoli, Aundha Nagnath, Maharashtra
Aundha Nagnath Temple is an ancient Shiva temple, considered to be one of the Jyotirlinga.
History:
********
Aundha Nagnath is supposed to be the eighth of the twelve jyotirlingas in India, an important place of pilgrimage. The present temple is said to have been built by the Seuna (Yadava) dynasty and dates to 13th century. The first temple is said to be from time of the Mahabharata and is believed to have been constructed by Yudhisthira, eldest of the Pandavas, when they were expelled for 14 years from Hastinapur. It has been stated that this temple building was of seven-storyed before it was sacked by Aurangzeb.